पोहा भले ही कितनी ही सिंपल डिश हो पर इसेक कई हेल्थ बेनिफिट्स भी हैं जिसकी वजह से आज इसने हर भारतीय के दिल में एक खास जगह बना ली है. तो इसी बात को याद करते हुए आज यानी की विश्व पोहा दिवस के दिन हम इससे जुड़ी कई बातों के बारे में जानेंगे. हर साल 7 जून को विश्व पोहा दिवस के रूप में मनाया जाता है. ये हर उम्र के लोगों का फेवरेट होता है. सभी इसे बड़े चॉव से खाना पसंद करते हैं. अलग-अलग राज्यों में पोहे को अलग नामों से जाना जाता है.
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के लोगों का ये पसंदीदा ब्रेकफास्ट है पर आज हम इस आर्टिकल में जानेंगे कि पोहा दिवस क्यों मनाते हैं और ये इंदौरियों को इतना क्यों पसंद है. पोहा जो आजकल एक आम नाश्ता बन गया है और इसे हर भारतीय खूब खाना पसंद करता है. वैसे तो हमारे भारत में कई फूड्स बाहर के देशों से आएं हैं पर पोहा भारत के राज्य मध्यप्रदेश के शहर इंदौर से आया है. जहां पर पोहा लोगों का फेवरेट ब्रेकफास्ट है.
कैसे बना पोहा इंदौर की जान
इंदौर जिसे मिनी मुंबई के नाम से भी जाना जाता है. वहां पर हर छोटी दुकान से लेकर किसी बड़े रेस्टोरेंट में पोहे को खास जगह दी गई है. हां पर लोग पोहे के दीवाने हैं. इंदौर से शुरू हुआ ये खास नाश्ता आज पूरे भारत में फेमस हो गया है. ये इतना किफायती है कि इसे हर वर्ग के लोग खरीद के खा भी सकते हैं.
बच्चों हो या बूढ़ें पोहे तो ज्यादातर लोगों को पसंद होता है. पर ये कैसे आज भारत के हर कोने तक पहुंचा ये कहानी काफी रोचक है. पोहा इंदौरियों की जान है वो इसे बड़े चॉव से खाना पसंद करते हैं. ऐसा कहा जाता है कि पोहा इंदौर में आजादी के करीब 2 साल बाद आ चुका था. महाराष्ट्र के रहने वाले पुरुषोत्तम जोशी जब अपनी बुआ के घर इंदौर आए तो यहां उनको नाश्ते में पोहा खिलाया गया. वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इंदौर के जायके का लुत्फ उठाया था. उन्होंने फिर इंदौर के तिलक पथ पर उपहार गृह नाम से एक दुकान खोली और पोहा बेचना शुरू कर दिया. और यहां से हुई पोहे की कहानी की शुरुआत.
पोहे के हैं अलग-अलग नाम
7 जून को विश्व पोहा दिवस मनाया जाता है. इसको मनाने की शुरुआत इंदौरी कलाकार राजीव नेमा ने की थी. पोहे को अलग-अलग राज्यों में अलग नामों से जाना जाता है. महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में इसे पोहे के नाम से जाना जाता है. बंगाल और असम में चिड़ा, तेलुगु में अटुकुलू और गुजरात में पौआ के नाम से जाना जाता है.